पवित्र अलवी परिसर की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यह कीमती पत्थर की पट्टिका, जिसकी तारीख 10 सफर 776 हिजरी (लगभग 670 साल पहले) है, पवित्र अलवी परिसर में मौजूद सबसे पुरानी यादगार पत्थरों में से एक है और यह अपने अंदर सदियों पुरानी एक मानवीय और ऐतिहासिक कहानी समेटे हुए है।
ऐतिहासिक और कलात्मक महत्व
पवित्र अलवी परिसर के पुरातन विरासत विभाग के प्रमुख अब्दुलहादी अल-इब्राहीमी ने इस ऐतिहासिक कलाकृति के बारे में बताया: "यह क़ब्र का पत्थर आयताकार है और इस पर पीले रंग की उभरी हुई सुंदर लिखावट है, जो उच्च कलात्मक कौशल को दर्शाती है। यह पवित्र अलवी परिसर की सबसे महत्वपूर्ण कलाकृतियों में से एक है। मैं इसे ऐतिहासिक और कलात्मक दृष्टि से सर की मस्जिद(जहां इमाम अली को ज़रबत लगी थी) के मिहराब के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मानता हूँ।"
क़ब्र के पत्थर का स्थान और इसका वास्तुशिल्प इतिहास
उन्होंने आगे कहा: "मूल रूप से यह पत्थर एक क़ब्रिस्तान से संबंधित था, जो बाब-अल-तूसी के गलियारे में स्थित था—जो आज एक नए प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। पहले यह एक दीवान (बरामदा) और दफ़न कक्ष था, लेकिन ओटोमन काल के विस्तार के दौरान इसे एक नए प्रवेश द्वार पर स्थानांतरित कर दिया गया। सन् 1291 हिजरी में, ओटोमन गवर्नर शिबली पाशा के आदेश पर बाब-अल-किबला और बाब-अल-तूसी का विस्तार किया गया, जिससे पुराना कक्ष ध्वस्त हो गया और इस पत्थर को नए दरवाज़े के गलियारे की दीवार पर लगा दिया गया, जहाँ आज यह देखा जा सकता है।"
अद्वितीय कलात्मक डिज़ाइन और क़ुरानी नक़्क़ाशी
उन्होंने बताया: "पत्थर के दोनों तरफ़ दो षट्कोणीय मेडलियन बनाए गए हैं, जिन पर उसी कलात्मक शैली में रंगीन नक़्क़ाशी की गई है, जो सौंदर्यपूर्ण सामंजस्य को दर्शाती है। इन पर क़ुरान की आयतें लिखी हुई हैं—दाईं ओर के मेडलियन पर लिखा है:
'रब्बिब्नी ली इंदका' رَبِّ ابْنِ لِي عِنْدَكَ»
और बाईं ओर के मेडलियन पर लिखा है:
'बैतन फिल जन्नह' بَيْتًافِي الْجَنَّةِ
यह इस स्थान और पत्थर की पवित्रता और इसकी गहरी प्रतीकात्मक अर्थवत्ता को दर्शाता है।"
इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज़
पवित्र अलवी परिसर में इस पट्टिका का अस्तित्व न केवल एक दुर्लभ कलाकृति है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है, जो पुराने युगों की गवाही देता है और इस्लामी कला तथा पवित्र मज़ारों के वास्तुशिल्प इतिहास के शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
इसके अलावा, साढ़े सात सदियों से भी अधिक पुराना होने के कारण, यह कलाकृति पवित्र अलवी परिसर में मौजूद सबसे पुराना ज्ञात पत्थर का स्मारक है, जो इसके प्राचीन और धार्मिक महत्व को और बढ़ा देता है।
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